बहुत दिन बाद दस बजे तक बेड पे लेटे है
बहुत दिन बाद फिर से दोस्तों से मिलने जाना है
बहुत दिन बाद सन्डे दूरदर्शन लगाया के
शायद आज भी डक टेल्स का रिपीट आता हो
हुआ अरसा चाट खाए हुए मैन रोड का
आज डिनर की जगह चाट और गोलगप्पे खाना है
दिवाली के पटाखे अब नहीं खीचते मुझको
दिवाली की मिठाई से ये दिन बनाना है
मेरे घर में हैं बच्चे और उनके पटाखे है
उन्ही से चुरा कर चार मिर्ची बम जलाना है
दिए में मजा जो है वो कहा बिजली की लडियो में
रेडीमेड छोड़ आज मिटटी के घरौंदे बनाना है।
Saturday, November 2, 2013
दिवाली मनाना है
दिवाली
जगमग जगमग दीयों के जैसे आंखे उनकी चमक रही हैं ।
मेरी रात अमावास की उनकी आँखों से दमक रही हैं।
छूट रही हैं फुलझड़िया जब वो खिलकर हंसती है।
मैं अनार सा रौशन रौशन जब वो जानू कहती है।
घिरनी जैसे घूम रही है खुशिया उसके आगे पीछे
वो राकेट सी आसमान में मैं मोमबत्ती सा नीचे
दिवाली कुछ ख़ास होती जो
एक फुलझड़ी साथ पकड़ कर
हवा में रौशन आठ बनाते
वो अपने घर मैं अपने घर
अपने अपने लोगो के संग
अपनी अपनी रस्म निभाते
Friday, November 1, 2013
छोटी ख्वाहिशे
एक जगह बस थोड़ी सी हो थक कर जहाँ सिमट कर सो ले
एक हो कोना इतना खाली जहाँ सिसक सिसक कर रो ले।
इतना सा ही असमान हो जिसके सारे तारे गिनले।
अपना भी कोई एक पता हो जहाँ लोग सब आये मिलने ।
तुमसे मेरा नाम जुड़ा हो लोग तुम्हे पहचाने मुझसे ।
सुबह सबेरे दर्शन तेरे और भला क्या मांगे तुझसे।
ख्वाब
ख्वाबो की जो लिस्ट बनाई थी बचपन में खेल खेल में
उसकी एक एक चीज़ हमारे पास अभी है
नए ख्वाब अब आते कम है
नींद ही मुश्किल से आती है
चलो लौट के फिर बचपन में
और बनाये लिस्ट एक जो
पहले से ज्यादा लम्बी हो
जीने के मकसद सब सारे
बचपन ही निश्चित करता है।
और जवानी धीरे धीरे
बुढ़ापे का रुख करता है
जब तक दिल से बच्चे हो तुम
जी भर के ख्वाबो को जी लो
कल जब होगा तब होगा
इस पल को इस पल ही जी लो।