Sunday, May 6, 2012

राह के पत्थर

राह में दिये पत्थर तुने
उन्ही पत्थरो को तोड़ के
उसी रास्ते पे छोड़ के
नयी एक सड़क बना दिया

के मेरे बाद जो आएंगे
कई राहगुजर इस राह से
उन्हें ठोकरें वो नहीं मिले
जिनपे गिरे कई बार हम

मेरे बाजूओं में तो दम था खैर
कई आएंगे इसके बगैर
मेरे राह के वो राहगुजर
मेरे दोस्त मेरे हमसफ़र

एक कारवां बने मेरे बाद
के लोग अब चले मेरे बाद
उस राह पे जो अब तलक
चलने के काबिल थे नहीं |

No comments:

Post a Comment