Wednesday, October 17, 2012

अभीकुछ हाथ खली है

अभी कुछ हाथ खाली है फ़क्त कुछ दिन की मोहलत दो
तुम्हारी मांग भरने को सितारे कम पड़ेंगे कल
अभी मुफलिसी का है आलम रहेगी जाने कब तक जो
बहुत ही तेज बीतेंगे दिन जो तुम साथ हो केवल


तुम्हारे साथ अक्सर मैं भूल जाता हूँ
फर्क क्या है ख़ुशी में और गम के आने में
तुम्हारे ख्वाब अक्सर मैं देख पता हूँ ..
फर्क मैं  भूल जाता हूँ हकीकत और फ़साने में

तुम्हारे साथ हर एक मौसम खुशनुमा लगता है
न महसूस होती है ठंडी कि चुभन मुझको
तरबतर हो के बारिश में  भींगना  अच्छा लगता है
ना अब तंग करती है गर्मियों की उमस मुझको

तुम्हारे साथ जीना इस कदर आसाँ हुआ मुझको
खुदा ने दोगुनी करके की हो मेहर मुझपे
ये जो रात काली है गुजर जाएगी पल भर में
सुबह की रौशनी पहली डालेगी सहर मुझपे




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